मानव जाति का विकास और उसकी प्रासंगिकता


 

     जब प्रथ्वी पर अफ्रीका के उष्ण कटिबंधीय वनों में जीवन पनप रहा था तब प्रथ्वी के किसी भी भाग में मानव का अस्तित्व नहीं था लेकिन इस समय मानव जाति के भविष्य की नींव रखी जा रही थी। उस समय तक प्राइमेट जो कि स्तनधारियों का एक समूह था उसकी एक शाखा के निरंतर विकास को ही मानव जाति का विकास माना जाता है जो कि निम्न क्रमिक चरणों में विकसित हुआ:-                           प्राईमेट→रामोपिथेकस→ऑस्ट्रेलोपिथेकस→होमोइरेक्टस→नियंडरथल→क्रोमैगनन→होमोसैपियंस(वर्तमान मानव)

     इन हजारों सालों में इंसान ने ना जाने कितनी ही चरम परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए खुद को आधुनिक मानव बनाया है और इस दौरान केवल वे पूर्वज ही खुद को विकास की प्रक्रिया में अनुकूलित कर पाए जिन्होंने घने गर्म जंगलों से बाहर निकल कर मैदानी भागों में अपने नए आवासों कि खोज की और फिर इस तरह मानव प्रजाति का भौगोलिक वितरण प्रारंभ हुआ। इस तरह भारत में भी पूर्वजों का आगमन हुआ जो कि भारतीय उपमहाद्वीप में इंसान के बसने कि प्रारंभिक घटना थी। 

     इसके बाद हम इंसानों ने धर्म बनाया,जातियां बनाईं, युद्ध किए,शासन व्यवस्था बनाई और आज कुछ छोटी छोटी बातों को लेकर इतने बड़े बड़े मुद्दे बना कर बैठे हैं। और एक दूसरे को हिन्दू मुसलमान के आधार पर बाहरी साबित करने में लगे हुए हैं। 

     हमारे साथ सरीसृपों का भी विकास हुआ जिनमें से कुछ सिर्फ इसलिए विलुप्त हो गए क्योंकि उनका शरीर भीमकाय और मस्तिष्क छोटा होता चला गया जबकि कुछ इसके प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण विलुप्त हो गए।

     हमारा इस ग्रह पर होना अपने आप में एक वरदान है और हमारे पास कुछ खास विशेषताएं भी हैं जैसे हमारे पास आवश्यकता से भी कई गुना ज्यादा मस्तिष्क क्षमता है और फिर भी हम अस्तित्व में हैं जबकि इसी अतिरिक्त क्षमता के कारण कई सौ प्रजातियां विलुप्त हो गईं। 

     अब हमें ये सुनिश्चित करना होगा कि क्या हमें धर्म, जाती, लिंग एवं नस्लीय आधार पर एक दूसरे से लड़ते रहकर अपने मातृ ग्रह के संसाधनों का दुरुपयोग करना है या फिर इसी विकास कि दशा को और आगे के लिए बढ़ाने की दिशा में काम करना है ताकि मानव जीवन और बेहतर हो सके।

     धर्म का आचरण कोई बुरी बात नहीं है क्योंकि धर्म किसी एक्शन सिनेमा में बैकग्राउंड म्यूजिक की तरह जीवन को रोमांचकारी बनाता है लेकिन जब इसी का प्रयोग अपने राजनैतिक एवं अन्य निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए तथा अपने से विधर्मी,विजातीय को अपमानित करने,अयोग्यताएं लागू करके खुद को विशेषाधिकरों से युक्त करने में किया जाए तो फिर यह मानव जीवन के लिए खतरे की घंटी है।

      में व्यक्तिगत तौर पर आप सभी से आग्रह करता हूं कि आप सभी अपने जीवन में कभी भी किसी के अधिकारों को  न छीनें बल्कि उनकी हक दिलाने में सहायक हो और अगर सभी ऐसा करते रहे तो एक दिन न सिर्फ सभी बुराइयां समाप्त हो जाएंगी बल्कि राज्य कि अवधारणा का भी कोई मतलब नहीं रह जाएगा।

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