सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

प्रदर्शित

सीमित संसाधन : एकमात्र जीवित ग्रह की बर्बादी

हमारी पृथ्वी पर उपस्थित कुल रीढ़ भार में से 1% जंगली जीव, 32% मनुष्य और शेष 67% मवेशी, 1971 में पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त संसाधनों को एक वर्ष के लिए उपलब्ध संसाधनों में से 6 दिन पहले खर्च करते थे यानी कि 25 दिसंबर को और आज 2022 में यह 28 जुलाई तक आ पहुंचा है जिसका अर्थ है कि हम 28 जुलाई के बाद किसी भी संसाधन को खर्च करेंगे तो यह हमारे भविष्य के संसाधनों से उधार होगा। 2030 तक यह खर्च भारत के संदर्भ में तो ढाई गुना तक हो जायेगा और वैश्विक संदर्भ में दो गुना अर्थात् हमें जो संसाधन एक साल के लिए मिले हैं उन्हें हम आज 7 महीने में खर्च कर रहे हैं और 2030 तक यह घटकर 6 महीने ही हो जायेगा। इस पारिस्थितिकी बजट को 2050 तक पूरा करने के लिए इसी रफ्तार पर हमें दो पृथ्वियों की आवश्यकता होगी। अगर इसे आज नियंत्रित नहीं किया गया तो काल्पनिक फिक्शन मैड मैक्स फ्यूरी जैसी कहानियाँ सच होने लगेंगीं। अपनी पृथ्वी के ओवरशूट को नियंत्रित करने के लिए हमें चाहिए कि हम संसाधनों का युक्तियुक्त उपभोग करें और बर्बाद न करें और 2050 तक प्रति वर्ष 5 दिन के संसाधनों का कम उपभोग करें और जनसंख्या वृद्धि दर को नियंत्रित करें अन

हाल ही की पोस्ट

मानव जाति का विकास और उसकी प्रासंगिकता

राष्ट्रवाद का विकास

पंचायती चुनावों के मुद्दे

सर्वोच्च न्यायालय पर उठते सवाल!

क्या सुप्रीम कोर्ट निष्पक्षता से परे जा चुका है?