सर्वोच्च न्यायालय पर उठते सवाल!

 जब लोग


महसूस करते हैं कि संसद,नौकरशाही और मीडिया ने उन्हें निराश किया है तो उनके लिए उम्मीद की आखिरी किरण है सर्वोच्च न्यायालय।

             भारत का सर्वोच्च न्यायालय अपनी न्यायिक समीक्षा की शक्ति के साथ शीर्ष न्यायालय है एवम् यह भारत के संविधान के तहत न्याय की अपील के लिए अंतिम न्यायालय है। वर्तमान परिस्थितियों में देखें तो सर्वोच्च न्यायालय किसी बात से जूझता नजर आता है वो है उसकी अपनी साख पर उठ रहे सवाल।

              सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए बनी अचार संहिता में कहा गया है कि सभी न्यायाधीशगण राजनैतिक मामलों में अपने व्यक्तिगत विचार रखने से परहेज़ करेंगे लेकिन अभी हाल ही में एक वरिष्ठ न्यायाधीश ने एक सार्वजनिक मंच से प्रधानमंत्री की खुलकर तारीफ की।

    अब सवाल यह उठता है कि देश की सर्वोच्च अदालत के वरिष्ठ न्यायाधीश जब ऐसी बात कहते हैं तो क्या हम अब न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर भरोसा कर सकते हैं जबकि खुद उनको ही इसी अदालत ने ऐसा करने से बचने की सलाह दी है। ऐसे में सवाल तो उठेंगे और अदालत को खुद को साबित करने की जरूरत है।

               क्योंकि अदालत के द्वारा देश में होने वाली कुछ अनचाही घटनाओं को रोकने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया गया जबकि पूरा देश सर्वोच्च न्यायालय की तरफ देख रहा था लेकिन अदालत ने उन्हें निराश किया हालांकि उसके पास इन घटनाओं को रोकने के लिए पर्याप्त शक्तियां और अधिकार थे। इन घटनाओं में प्रमुख है दिल्ली चुनाव के दौरान सांप्रदायिक राजनीति,दिल्ली दंगे,CAA NRC NPR ,उग्र राष्ट्रवाद का चुनाव में प्रयोग, स्वतंत्रता आंदोलन के नारों का राजनैतिक दलों द्वारा इस्तेमाल इत्यादि।

   न्याय की सबसे बड़ी अदालत की निष्क्रियता से देश को बहुत बड़ी ऐतिहासिक क्षति हुई है । संविधान निर्माता आज यह देखकर जरूर दुखी होते की उन्होंने देश में ' कानून का शासन ' स्थापित करने के लिए जिस संस्था की व्यवस्था की थी वो खुद ' लोगों के शासन ' के आगे मूकदर्शक बनी हुई है।

  

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